जानिए कैसा बनाता है व्याभिचारी योग? क्या है व्याभिचारी योग।
व्यभिचारी योग-
व्यभिचारी योग बनने पर व्यक्ति के जीवन में कई प्रेम प्रसंग तथा अवैध संबंध होते हैं। यह योग बहुत घातक होता है। क्योकि व्यभिचार सारे अनर्थों की जड़ है। इसके कारण कुल अथवा परिवार की मर्यादा और यश का सर्वनाश हो जाता है। इस योग से भरे पूरे परिवार का सफाया हो जाता है। ज्योतिष में माना जाता है कि जन्म कुंडली में शुक्र उच्च का होने पर व्यक्ति के कई प्रेम प्रसंग हो सकते हैं, जो कि विवाह के बाद भी जारी रहते हैं। शुक्र को भोग-विलास का कारक माना गया है। शुक्र प्रधान व्यक्तियों में काम-भावना का अतिरेक पाया जाता है। यदि जन्म पत्रिका में शुक्र नीचराशिस्थ हो, चन्द्र नीचराशिस्थ हो एवं शुक्र व चन्द्र पर क्रूर ग्रहों, विशेषकर मंगल का प्रभाव हो तो यह योग व्यक्ति को चारित्रिक रूप से पतित कर देता है। मंगल एक क्रूर एवं उत्तेजनात्मक ग्रह है।
🔳आइए जानते हैं कैसे बनता है व्यभिचारी योग-
जब मंगल का प्रभाव शुक्र पर पड़ता है तब व्यक्ति अपनी लैंगिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए किसी भी सीमा का उल्लंघन कर सकता है। शुक्र-मंगल युति, मंगल का शुक्र की राशि में स्थित होना, शुक्र-मंगल का दृष्टि संबंध आदि योग भी व्यक्ति के चारित्रिक पतन का कारण बनते हैं, वहीं यदि इन ग्रहयोगों के साथ राहु-केतु का लग्न या लग्नेश पर प्रभाव हो तो व्यक्ति आपराधिक प्रवृत्ति का होकर अपनी वासनापूर्ति करता है।
इन योगों में जातक को विपरीत लिंगियों के कारण लांछन लगता है।
सप्तम भाव में मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता हैं स्त्री-पुरुष के विवाहेत्तर संबंध भी बनाता है। संतान पक्ष के किये कष्टकारी होता हैं। मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति-पत्नी में दूरियां बढ़ती हैं।
द्वादश भाव में मंगल शैय्या सुख, भोग, में बाधक होता हैं इस दोष के कारण पति पत्नी के सम्बन्ध में प्रेम एवं सामंजस्य का अभाव रहता हैं। यदि मंगल पर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हों, तो व्यक्ति में चारित्रिक दोष और गुप्त रोग उत्पन्न कर सकता हैं। व्यक्ति जीवनसाथी को घातक नुकसान भी कर सकता हैं।
जन्म कुंडली में सप्तम भाव में शुक्र स्थित व्यक्ति को अत्याअधिक कामुक बनाता हैं जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध बनने कि संभावना प्रबल रहती हैं। जिस्से वैवाहिक जीवन का सुख नष्ट होता हैं।
सप्तम भाव में सूर्य हो, तो अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनाने वाला जीवनसाथी मिलता है।जन्म कुंड़ली मे शत्रु राशि में मंगल या शनि हो, अथवा क्रूर राशि में स्थित होकर सप्तम भाव में स्थित हो, तो क्रूर, मारपीट करने वाले जीवनसाथी कि प्राप्ति होती हैं।
जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है।
जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला कई स्त्री-पुरुष से संबंध रखने वाला व्यभिचारी होता हैं व विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है।
उक्त ग्रह दोष के कारण ऐसा जीवनसाथी मिलता हैं जिसके कई स्त्री-पुरुष के साथ अवैध संबंध होते हैं। जो अपने दांपत्य जीवन के प्रति अत्यंत लापरवाह होते हैं।
जन्म कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव में हों, तो यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद पैदा होता हैं। इस योग के कारणा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं। इस योग के प्रभाव से पति-पत्नी दोंनो के विवाहेत्तर संबंध बन सकते हैं। इस लिये जिन पुरुष और कन्या कि कुंडली में में इस तरह का योग बन रहा हों उन्हें एक दूसरे कि भावनाओं का सम्मान करते हुए अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिए।
🔳 व्यभिचारी योग जैसे अशुभ प्रभाव से बचने के लिए लड़कियां यह उपाय करें-
▪प्रतिदिन शिव-पार्वतीजी का पूजन करें। मां पार्वती की मांग में सिंदूर भरे तथा पूरे विधि-विधान से हरितालिकातीज का व्रत रखें।
▪ भगवान शिव को सोमवार को जल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत रखें।
▪रोज क्वार्ट्ज पावर ग्रिड के नीचे फोटो रखें एवं मोती की अंगुठी धारण करें।
▪ मासिक धर्म के समय किचन में बिल्कुल ना जाए और खाना बिल्कुल ना बनाएं।
▪किसी भी बुजुर्ग खासकर माता-पिता का हृदय कभी ना दुखाएं और उनका या अन्य किसी बड़े व्यक्ति का अनादर बिल्कुल ना करें।
▪ भोजन का दान करें या मंदिर में गुप्त दान दें।
▪प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का पाठ करें।
▪ प्रतिदिन पीपल के वृक्ष पर हल्दी डालकर जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें।
🔳 व्यभिचारी योग से बचने के पुरुषों के लिए उपाय-
▪ मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करें।
▪ प्रतिदिन पीपल एवं केले के वृक्ष पर जल चढ़ाएं।
▪ प्रतिदिन रामरक्षास्तोत्रम् का पाठ करें।
▪ प्रभु श्रीराम के चरणो में सफेद फूल चढ़ाएं।
▪ फल एवं सब्जियों का तुलादान दें।
▪ प्रतिदिन माता-पिता के चरण छुए तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।