Uncategorized

[ Prem Vivah Yog ] जन्म कुंडली में प्रेम विवाह योग कैसे देखें ?

जन्मकुंडली विश्लेषण

(एक ज्योतिषीय आलेख)

प्रेम योग
प्रेम विवाह योग
व्यभिचार योग
अवैध सम्बंध योग
विवाहोपरांत अवैध संबंध योग?

Prem Vivah Yog  विवाह पूर्व या विवाहेतर संबंध आज एक आम बात हो गई है। हम भले ही किसी के चेहरे को देखकर इसका पता नहीं चला सकते पर कुण्डली से इस तरह के अवैध संबंधों का पता लगाया जा सकता है ।

Prem Vivah Yog

[Prem Vivah Yog] जन्म कुंडली में प्रेम विवाह योग कैसे देखें ?

Post Name  Prem Vivah Yog
Category  Jyotish
Portal  www.jyotishvidhya.in
Post Date 25/07/2022

अवैध संबंध का सीधा अर्थ यौन इच्छा से है, पति द्वारा प्यार-प्रेम, मान और सम्मान न मिलने के कारण भी कई स्त्रियां किसी परपुरुष का संग चाहती है ताकि वो अपने मन में दबी भावनाओं को प्रकट कर सके, इसी अवसर का लाभ उठाकर कई दुष्ट प्रवृत्ति के पुरुष उसके स्त्रीतत्व को भंग कर अवैध संबंध बना लेते हैं ।

कामवासना भी शरीर और जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है इसकी तृप्ति करना भी परमावश्यक है किन्तु वासना की तृप्ति के साथ प्रेम का रस मिला देने से वो ‘योग’ बनता है, जिससे सृष्टि का निर्माण होता है इसलिए पति अथवा पत्नी दोनों को अपने जीवनसाथी के साथ दाम्पत्य जीवन में वासना के साथ प्रेम का निर्माण भी करना चाहिए, एक दूसरे की वेदना और भावना को समझना चाहिए । पति अथवा पत्नी दोनों में से कोई भी एक यौनक्रिया में सफल ना भी हो, तो भी अगर दोनों में प्रेम है तो उनका ​शुद्ध​ प्रेम कामवासना पर विजय प्राप्त कर अवैध संबंध जैसे जहर पर अंकुश लगा सकता है ।

ज्योतिष शास्त्र में अवैध संबंध जैसे विषय पर भी स्पष्टता मिलती है चन्द्रमा मन का कारक होता है और कामवासना मन से जागती है। लग्न व्यक्ति स्वयं होता है पंचम भाव प्रेमिका और सप्तम भाव पत्नी का होता है एवं शुक्र भोग विलास का कारक है, शनि, राहू, मंगल और पंचम भाव, पंचमेश, द्वादश और द्वादशेश का आपस में संबंध होना जातक के विवाह पूर्व एवं पश्चात अवैध संबंध स्थापित करवाते हैं। किसी भी व्यक्ति का जन्म कुंडली में सप्तम भाव पर शनि की चन्द्रमा के साथ युति जहां जातक को मानसिक रूप से पीड़ित करती है वहीं प्रेम संबंध भी करवाती है। कुछ ऐसे ज्योतिषीय योगों का उल्लेख कर रहा हूं, जिनके जन्म कुंडली में होने से, जातक का अवैध संबंध और कामुक होने का संकेत मिलता है:–>

1—जन्म कुंडली में शनि और शुक्र की युति, वैवाहिक जीवन में किसी अन्य का आना बताता है ।

-2– पंचम भाव में शनि, शुक्र और मंगल की युति अवैध संबंध का निर्माण करती है ।

3— मेष या वृश्चिक राशि में मंगल के साथ शुक्र के होने से पराई स्त्री से घनिष्ठा बनती है।

4— जन्म कुंडली में चन्द्रमा से द्वितीय स्थान में शुक्र हो तो ‘सुनफा योग’ बनता है । ऐसा जातक भौतिक सुखों की प्राप्ति करता हैं उसका सौन्दर्य आकर्षक होता है अन्य स्त्रियों से शारीरिक संबंध की प्रबल संभवना होती है।

5– द्वितीय, छठे और सप्तम भाव के किसी भी स्वामी के साथ शुक्र की युति लग्न में होने से जातक का चरित्र संदेहप्रस्त होता है ।

6— सूर्य और शुक्र की युति मीन लग्न में होने से जातक को अत्यंत कामुक बनाती है उसका अवैध संबंध बनता है तथा ऐसे जातक की कामवासना की तृप्ति शीघ्र नहीं होती ।

7—- बुध और शुक्र की युति यदि सप्तम भाव में हो तो जातक अवैध संबंधों के लिए नूतन तरीके अपनाता हैं ।

8— शनि, मंगल और शुक्र का काम वासना से घनिष्ठ संबंध है यदि जन्म कुंडली में शनि और मंगल की युति सप्तम भाव पर हो तो जातक समलिंगी होता है। ये ही युति यदि अष्टम, नवम, द्वादश भाव पर हो तो जातक का अपने बड़ों से अवैध संबंध होता हैं ।

9— मंगल और राहू की युति अथवा दृष्टि शुक्र पर हो तो जातक कामुक होता है एवं अवैध संबंध बनाने के लिए उसका मन भटकता है ।

10—- लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम भाव में गुरु पर मंगल शुक्र का प्रभाव और चन्द्रमा पर राहू का प्रभाव हो तो व्यक्ति अवैध संबंध बनाने के लिए सभी सीमाओं का उल्लंघन कर देता है ।

11— लग्न में शनि का होना जातक को कामवासना अधिक देता है, पंचम भाव में शनि होने से अपने से बड़ी स्त्रियों के प्रति अवैध संबंध बनाने के लिए जातक को आकर्षित करता है ।

12—- शनि का सप्तम भाव में चन्द्रमा के साथ होना और मंगल की दृष्टि पड़ने से जातक वेश्यागामी होता है इसी योग में अगर शुक्र का संबंध दृष्टि अथवा युति से बन जाए तो अवैध संबंध निश्चित हो जाता है ।

-13— चन्द्रमा जन्म कुंडली में कहीं पर भी नीच को होकर बैठा हो और उस पर पाप प्रभाव हो तो जातक अपने नौकर/नौकरानी से अवैध संबंध बनवाता है यहीं चन्द्रमा अगर दूषित होकर नवम भाव में स्थित हो तो जातक अपने गुरु अथवा अपने से बड़ों के साथ अवैध संबंध बनाता है ।

14– मंगल रक्त को दर्शता है जन्म कुंडली में किसी पाप ग्रह के साथ मंगल की युति सप्तम भाव में हो या सूर्य सप्तम में और मंगल चतुर्थ स्थान में हो अथवा चतुर्थ भाव में राहू हो तो व्यक्ति कामुकता में अंध होकर पशु समान कार्य करता है ।

15– राहू का अष्टम भाव में होना जातक का अवैध संबंध कराता है ।

16– तुला राशि में चार ग्रह एक साथ होने से जातक के परिवार में कलेश उत्पन्न करते है जिसके कारण जातक बाहर अवैध संबंध बनाता है ।

17—- शनि का दशम भाव में होना जातक के मन में विरोधाभास उत्पन्न करता है। शुक्र और मंगल की युति जन्म कुंडली में कहीं पर भी हो एवं शनि दशम भाव में हो तो जातक ज्ञानवान भी होता है एवं काम वासना और अवैध संबंधों को गंभीरता से लेता है उसका मन स्थिर नहीं रह पाता, कभी ज्ञानी बन जाता है कभी अवैध संबंधों का दास ।

18—– बुध और शनि का संबंध सप्तम भाव से हो तो ऐसे जातक यौनक्रियाओं में नीरस एवं अयोग्य होते हैं ।

19—- सूर्य का सप्तम भाव में होना जातक के वैवाहिक जीवन में कलेश उत्पन्न करता है, इससे परेशान होकर जातक अवैध संबंध बनाता है ।

20—- सप्तम भाव में राहू और शुक्र हो अथवा राहू और चन्द्रमा की युति हो तथा गुरु द्वादश भाव में स्थित हो तो विवाह पश्चात कार्यालयों में ही अवैध-संबंध बनते हैं ।

21– बुध और शनि की युति यदि द्वादश भाव में हो तो जातक शीघ्रपतन का रोगी बन जाता है और इसी योग में यदि लग्न, सप्तम और अष्टम भाव में राहू हो तो व्यक्ति अपनी जवानी को स्वयं नष्ट करता है एवं उसका जीवनसाथी किसी अन्य से शरीरिक तृप्ति लेता है ।

22— मंगल जोश और शुक्र भोग एवं द्वादश भाव अवैध संबंध में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है यदि मंगल, शुक्र और द्वादश भाव का स्वामी का संबंध सप्तम भाव से हो तो व्यक्ति लंपट होता है एवं कई स्त्रियों से उसका अवैध संबंध होता है। इन्हीं तीनों का योग चतुर्थ या द्वादश भाव में हो तो जातक अत्यंत कामी होता है और अपने जीवन में मर्यादा त्याग कर अधिक अवैध संबंध बनाता है। लग्नेश एकादश में स्थित हो और उस पर पाप प्रभाव हो तो जातक अप्राकृतिक यौनक्रियाएं की तृप्ति हेतु अवैध संबंध बनाता है ।

23— जन्म कुंडली में चन्द्रमा, मंगल, शुक्र, राहू, सप्तम भाव, पंचम भाव और द्वादश भाव अवैध संबंध का निर्माण करते हैं ।

24– मंगल शारीरिक शक्ति का कारक है तथा विवाह के पश्चात जो संबंध बनते हैं उसको भी दर्शाता है। शुक्र तो स्वयं भोग विलास है, विपरित लिंग व अन्यों को आकर्षित कराता है, कामेच्छा जगाता है, रोमांस देता है। शनि वैराग्य भी देता है, आलोचना और योगों में अवैध संबंधों के कारक का भी कार्य करता है l

25– शुक्र और सूर्य की युति लग्न में हो तो व्यक्ति व्याभिचारी होता ही है ।

26– मंगल और शुक्र की युति पंचम भाव में सच्चा प्रेम होता दोनो मे आपस मे प्रेम होता है ।

Leave a Comment