चंडीपाठ॥ SHREE CHANDIPATH ॥ दुर्गा सप्तशति चंडी पाठ ॥ श्री चंडी पाठ के लाभ ॥Durga Saptashati Chandi Path॥
॥ चंडीपाठ के लाभ ॥
Chandi Path || श्री चण्डी पाठ || Durga Saptashati Chandi Paath
Post Name | Durga Saptashati Chandi Paath |
Category | Jyotishvidhya |
Portal | www.jyotishvidhya.in |
Post Date | 21/01/2022 |
चंडीपाठ के कितने अंग है?
सप्तशती के छह अंग मुख्य है-
- कवच
- अर्गला
- कीलक
- प्रधाणिक
- वैकृतिक रहस्य
- मूर्त्त रहस्य
इनके बिना चण्डीपाठ पूरा नहीं होता है। इसका फल यजमान को भुगतना पड़ता है। आदि व अंत में नर्वाण मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। बीच में चण्डीपाठ करें। देव्यथर्वशीर्ष, कुंजिकास्तोत्र व क्षमा याचना स्तोत्र का पाठ करने से चण्डी पाठ पूर्ण होता है। भगवान शिव कहते हैं। कि पहले अर्गला, कीलक व बाद में कवच पाठ करना चाहिए। इसके बाद ही चण्डीपाठ करना चाहिये।
- अर्गला से पाप का नाश होता है।
- कीलक से मनचाहा फल मिलता है।
- कवच शरीर की रक्षा है।
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कुछ विद्वान चंडीपाठ, के बाद, बीच में व पहले ‘बटुक भैरव स्तोत्र’ का पाठ भी करते हैं। इससे बड़े से बड़ा संकट दूर होता है। तथा सारी मनोकामनायें पूर्ण होती है।
श्री चण्डी पाठ !!
॥ श्रीचण्डीपाठः ॥
॥ ॐ श्री देवैः नमः ॥
॥ अथ चंडीपाठः ॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता ।
नमस्तस्यै १४ नमस्तस्यै १५ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-१६॥
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।
नमस्तस्यै १७ नमस्तस्यै १८ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-१९॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै २० नमस्तस्यै २१ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-२२॥
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै २३ नमस्तस्यै २४ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-२५॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै २६ नमस्तस्यै २७ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-२८॥
या देवी सर्वभूतेषु च्छायारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै २९ नमस्तस्यै ३० नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-३१॥
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ३२ नमस्तस्यै ३३ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-३४॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ३५ नमस्तस्यै ३६ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-३७॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ३८ नमस्तस्यै ३९ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-४०॥
या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ४१ नमस्तस्यै ४२ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-४३॥
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ४४ नमस्तस्यै ४५ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-४६॥
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ४७ नमस्तस्यै ४८ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-४९॥
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ५० नमस्तस्यै ५१ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-५२॥
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ५३ नमस्तस्यै ५४ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-५५॥
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ५६ नमस्तस्यै ५७ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-५८॥
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ५९ नमस्तस्यै ६० नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-६१॥
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ६२ नमस्तस्यै ६३ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-६४॥
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ६५ नमस्तस्यै ६६ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-६७॥
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ६८ नमस्तस्यै ६९ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-७०॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ७१ नमस्तस्यै ७२ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-७३॥
या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ७४ नमस्तस्यै ७५ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-७६॥
इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भुतानाञ्चाखिलेषु या ।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः ॥ ५-७७॥
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद् व्याप्य स्थिता जगत् ।
नमस्तस्यै ७८ नमस्तस्यै ७९ नमस्तस्यै नमो नमः ॥ ५-८०॥
॥ इति चंडीपाठः ॥
श्री चण्डी पाठ के लाभ : shri chandi path ke labh in hindi : कब करें कितनी बार पाठ
शास्त्रों में कहा गया है कि यज्ञों में अश्वमेध यज्ञ व देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार स्तुतियों में ‘दुर्गा सप्तशती’ सबसे अधिक व तत्काल फल देने वाली है। नवरात्रों में दुर्गा सप्तशती की पूजा से कई गुणा फल अधिक मिलता है।
- पारिवारिक संकट आने पर दुर्गा सप्तशती का तीन बार पाठ करायें या करें।
- यदि घर में कोई तकलीफ पा रहा हो तो पांच बार दुर्गा सत्पशती का पाठ करें।
- यदि परिवार में कोई भय पैदा करने वाला संकट आया है तो सात बार पाठ करें।
- परिवार की सुख समृद्धि के लिये नौ बार पाठ करें।
- धनवान बनने के लिये ग्यारह बार पाठ करें।
- मनचाही वस्तु पाने के लिये बारह बार पाठ करें।
- घर में सुख शांति व श्री वृद्धि के लिये पन्द्रह बार पाठ करें।
- पुत्र-पौत्र, धन-धान्य व प्रतिष्ठा के लिये सोलह बार पाठ करें।
- यदि परिवार में किसी पर राजदंड, शुत्र का संकट या मुकदमें में फंस गये हो तो अठारह बार पाठ करें।
- जेल से छुटकारा पाने के (अगर निदोष हैं) लिये पच्चीस बार पाठ का विधान है।
- शरीर में कोई घाव-फोड़ा आदि हो गया हो या आपरेशन कराने की नौबत आ गयी हो तो तीस बार पाठ कराने से फायदा होता है।
- भयंकर संकट, असाध्य रोग, वंशनाश या धन नाश की नौबत आये तो सौ बार सत्पशती का पाठ करायें। सौ बार पाठ को ही शतचण्डी पाठ कहते हैं।
- एक हजार पाठ कराने वाले यजमान को मुक्ति मिल जाती है। इसे ही सहस्त्रचण्डी पूजा कहते हैं।